Wednesday, June 25, 2025

चिंतन मनन

कर्म ही सच्चा साधन
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एक बार महात्मा बुद्ध वन में नदी किनारे ध्यानमग्न बैठे थे। उसी नदी के पास एक गुरुकुल था, जहाँ एक मुनि अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे। संयोग से मुनि की दृष्टि बुद्ध पर पड़ी, तो वे उनके पास चले आए।
बुद्ध का सान्निध्य पाकर मुनि ने विनम्रतापूर्वक प्रश्न किया—
“गुरुदेव, क्या पूजा-पाठ से कुछ प्राप्त होता है?”
बुद्ध मुस्कुराए और बोले—
“पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए। यदि कोई इस नदी को पार करना चाहे, तो उसे क्या करना होगा?”
मुनि ने उत्तर दिया—
“यदि वह तैरना जानता है, तो तैरकर पार कर सकता है। यदि नाव उपलब्ध हो, तो नाव से जा सकता है। और यदि जल कम हो, तो पैदल चलकर पार किया जा सकता है।”
बुद्ध ने पुनः प्रश्न किया—
“यदि वह इन तीनों उपायों को भी न अपनाए, तो?”
अब मुनि कुछ क्षण के लिए चुप हो गए। फिर जैसे ही सत्य का बोध हुआ, वे झट से बुद्ध के चरणों में गिर पड़े और बोले—
“गुरुवर, मैं आपके कथन का मर्म समझ गया! मात्र पूजा-पाठ से कुछ प्राप्त नहीं होता, जब तक कि स्वयं कर्म न किया जाए।”
बुद्ध ने सहज स्वर में कहा—
“सही कहा। यदि कोई व्यक्ति नदी के किनारे खड़े होकर दिन-रात प्रार्थना करता रहे, तो क्या वह नदी पार कर सकता है? नहीं! जब तक वह स्वयं तैरने का प्रयास नहीं करेगा या नाव का उपयोग नहीं करेगा, तब तक पार नहीं जा सकता। ठीक उसी प्रकार, केवल पूजा-पाठ या भाग्य के सहारे कुछ भी नहीं मिलता। कर्म ही सच्चा साधन है, जो हमें सफलता दिलाता है।”
इस प्रसंग का सार यही है कि हमारा भविष्य हमारे अपने कर्मों पर निर्भर करता है, न कि केवल भाग्य पर। जो लोग केवल किस्मत के भरोसे बैठ जाते हैं, वे अपने जीवन में कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। ईश्वर ने हमें कर्म करने की स्वतंत्रता दी है, इसलिए भाग्य को कोसने के बजाय हमें अपने प्रयासों पर विश्वास रखना चाहिए।

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