Monday, December 8, 2025

सरकारी नौकरी छोड़ फिल्मों में आए:लेट-लतीफी पर गोविंदा को मारा था थप्पड़, विलेन की इमेज का खौफ था कि बेटे के दोस्त घर नहीं आते थे

भारी-भरकम आवाज, सिहरन पैदा कर देने वाली मुस्कुराहट और किसी को भी डरा सकने वाली आंखें। ये थे बॉलीवुड के सबसे खतरनाक विलेन अमरीश पुरी। आज उनकी 18वीं पुण्यतिथि है। पुरी साहब जबरदस्त कलाकार थे। ये उनकी अदाकारी का ही कमाल था कि परदे पर निभाए उनके विलेन वाले किरदार चाहे मि. इंडिया का मोगैंबो हो, तहलका का डॉन्ग हो या दामिनी का इंद्रजीत सिंह चड्ढा- सारे कैरेक्टर्स अमर हैं।

उनकी विलेन वाली इमेज का रियल लाइफ में भी लोगों में इतना खौफ था कि उनके बेटे के दोस्त उनके घर आने से इसलिए घबराते थे कि कहीं पुरी साहब से सामना न हो जाए। मगर अपनी रील लाइफ के उलट अमरीश पुरी एक उम्दा और दिलदार इंसान थे। हालांकि समय के पक्के थे, इतने पक्के कि लेट-लतीफी के चलते उन्होंने एक बार गोविंदा को थप्पड़ भी जड़ दिया था। वे अपने जमाने के सबसे महंगे विलेन थे। कहा जाता है कि मि. इंडिया के लिए उनकी फीस एक करोड़ रुपए थी।

कोई 22 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में आने के लिए पहला ऑडिशन दिया, तब ये कहकर उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया कि उनका चेहरा पथरीला सा है, हीरो के रोल में नहीं जचेंगे। फिर वो राज्य कर्मचारी बीमा निगम में सरकारी नौकरी पर लग गए। 20 साल से ज्यादा वहीं रहे फिर 40 की उम्र के आसपास बतौर विलेन फिल्मों में कदम रखा। बस, यहीं से उनकी जिंदगी बदली और वे भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े विलेन बनकर उभरे।

अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के नवांशहर में हुआ था। ये मशहूर गायक के.एल. सहगल के कजिन थे, वहीं इनके दोनों बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी भी एक्टर थे। अमरीश ने शुरुआती पढ़ाई पंजाब में करने के बाद शिमला के बी.एम. कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था क्योंकि अमरीश के दोनों भाई हिंदी सिनेमा के जाने-माने चेहरे थे तो अमरीश भी हीरो बनने का ख्वाब देखा करते थे। महज 22 साल की उम्र में अमरीश भी भाइयों के पास मुंबई पहुंच गए।

यहां उन्हें एक हीरो के रोल के ऑडिशन के लिए बुलाया गया, लेकिन पहले ही ऑडिशन में ये फेल हो गए। कास्टिंग करने वाले व्यक्ति ने अमरीश को ये कहते हुए रिजेक्ट कर दिया कि इनका चेहरा बेहद पथरीला है। हीरो बनने का सपना टूटा तो इन्हें कर्मचारी राज्य बीमा निगम में मामूली क्लर्क की नौकरी मिल गई। नौकरी के दिनों में ही अमरीश की मुलाकात NSD (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के निदेशक इब्राहिम अल्काजी से हुई और उनके कहने पर ये थिएटर से जुड़ गए। शुरुआत में इन्होंने स्टेज की सफाई करने जैसे कई मामूली काम किए, लेकिन फिर दमदार अभिनय के दम पर ये पृथ्वी थिएटर के मंझे कलाकारों में जगह बनाने लगे।

22 सालों तक काम कर ये मामूली क्लर्क से ऑफिसर बन चुके थे, लेकिन चंद फिल्मों में काम मिलने लगा तो अमरीश अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना चाहते थे। अमरीश अपने से कम उम्र के रंगकर्मी सत्यदेव दुबे को अपना गुरु मानते थे, उन्हीं के कहने पर अमरीश ने नौकरी करना जारी रखा। नौकरी के बीच ही 1956 की फिल्म भाई-भाई में अमरीश को एक मामूली चंद सेकेंड का रोल मिला था। उनके करियर का पहला बड़ा रोल 1970 की फिल्म प्रेम पुजारी में रहा।

इस समय अमरीश 39 साल के थे। जब फिल्मों में अच्छा काम मिलने लगा तो अमरीश ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और फिल्मों पर ही फोकस किया। 1980 की फिल्म हम पांच से अमरीश पुरी को देशभर में पहचान मिली और उन्हें दमदार अभिनय के बाद विलेन के रोल मिलने लगे। विधाता में पहली बार अमरीश ने जगावर चौधरी नाम से विलेन का रोल निभाया। आगे अमरीश शक्ति, हीरो जैसी फिल्मों में लगातार काम करते हुए पॉपुलर विलेन बन गए।

अमरीश पुरी के लुक और उनका परफेक्शन

मिस्टर इंडिया के मोगैंबो – कल्ट क्लासिक फिल्म मिस्टर इंडिया में अमरीश मोगैंबो के आइकॉनिक रोल में नजर आए। प्रोड्यूसर बोनी कपूर चाहते थे कि मोगैंबो के लुक में कोई कमी नहीं छोड़ी जाए, इसके लिए उन्होंने रकम की कोई सीमा तय नहीं की और कॉस्ट्यूम डिजाइनर को आदेश दिए कि वो जो चाहें करें, लेकिन नया लुक बनाएं।

कई रातों की कड़ी मेहनत के बाद 25 हजार रुपए के बड़े खर्च में ये लुक तैयार हो सका। 1985 में जब फिल्म बनना शुरू हुई उस समय कॉस्ट्यूम में इतना खर्च करना बड़ी बात थी। कॉस्ट्यूम का ज्यादातर सामान इंग्लैंड से मंगवाया गया था। जब लुक तैयार हुआ तो बोनी ने डिजाइनर को 1 हजार रुपए की बख्शीश दी थी।

अपनी ऑटोबायोग्राफी में अमरीश पुरी ने लिखा था कि मोगैंबो का रोल हिटलर से मिलता-जुलता था, जिसका नाम क्लार्क गेबल स्टारर 1953 की हॉलीवुड फिल्म से लिया गया था। ऐसे में मोगैंबो के रोल में ढलने के लिए अमरीश 20 दिनों तक अंधेरे कमरे में बंद रहे थे। उन्होंने कई दिनों तक उजाला नहीं देखा था।

रेयर थे अमरीश पुरी के पैर

अमरीश पुरी एक रेयर कलाकार थे, साथ ही उनके शरीर की बनावट भी हट कर थी। उन्हें दोनों पैर में अलग साइज के जूते लगते थे। एक पैर का नाप था 11 नंबर और दूसरे का 12 नंबर। उनके कॉस्ट्यूम डिजाइनर माधव इतनी तरकीब से जूते डिजाइन करते थे कि अमरीश को पता भी नहीं चलता था कि उन्होंने दोनों 12 नंबर के जूते पहने हैं क्योंकि नए जूते काटते थे, इसलिए वो एक महीने पहले ही कॉस्ट्यूम और जूते पहनकर ट्रायल लेते थे। शूटिंग शुरू होने के 15 दिन पहले ही अमरीश उन्हें पहन-पहनकर पुराने कर लेते थे।

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