पढ़ा -लिखा
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शर्मा जी ने रेहड़ी लगाए 14-15 साल के लड़के से कहा..तुम्हे कुछ दिन से देख रहा हूं, यहां रोज गोलगप्पे की रेहड़ी लगाते हो, स्कूल क्यों नहीं जाते….
बस अंकल जी हालत कुछ ऐसी ही है…
एक संस्था चलाता है, जहाँ गरीब बच्चों के लिए कक्षाएं चलाई जाती है, तुम भी आ सकते हो….
फिर गोलगप्पे कौन बेचेगा घर कैसे चलेगा।
क्यो, तुम्हारे माता -पिता नही हैं क्या
है भाई है बहन भी है पर घर की जिम्मेदारी मुझ पर है, वैसे भी पढ़ -लिख कर क्या करूँगा।
पढ़ कर तुम बड़े आदमी बन सकते हो….
लड़का ज़ोर से हँसा बड़ा आदमी वो सूटबूट वाला,जो गरीब मां -बाप से किनारा कर लेता है, मेरे बापू चपरासी थे मामूली तनख्वाह हम दो भाई ,एक बहन बापू ने बड़ी मेहनत से भाई बहन को पढ़ाया कर्ज़ा लिया,भाई अफसर बन गया काँलेज में अपनी पसंद की लडकी से शादी की और पत्नी को साथ ले शहर निकल गया…
पलट कर देखा तक नही..बहन बड़े स्कूल की प्रिंसिपल है उसे व उसके पति को चपरासी पिता, अनपढ़ मां, और छठी पास भाई धब्बा लगते है कभी मिलने तक नही आती…उनकी बड़ी शिक्षा पर हम पैबंद से लगते है अब बापू के पास काम नहीं रहा मां बीमार रहती है…
मैं घर चलाउ या पढूं…वैसे भी आदमी सोच से बड़ा होता है, डिग्रियों से नहीं !पढ़ना तो मैं भी चाहता हूँ, लेकिन ज़िमेदारीयां नहीं पढ़ने देगी।
फिर मैंने तय किया कि, जिन माता -पिता ने कष्ट सह कर पाला, उन्हें सुख दे सकूं इसी में खुद को बड़ा आदमी मान लूँगा..
चलिए अब गोलगप्पे खाइये….
कुछ कमाई तो हो, कल माँ की दवाईयां खत्म हो गई, वो भी लानी है
शर्मा जी ने कुछ सोचा और कहा *तुम अच्छे गोलगप्पे बनाते हो, घरवालों के लिए भी 100 रुपए के पैक कर दो, पैसे देकर शर्मा जी नीची गर्दन करते हुए धीमे धीमे चले गए लेकिन शर्मा जी तो अकेले रहते है उनके बच्चे विदेश में सेटल हो गए……
ऐसे ना जाने कितने बच्चे बचपन खो देते हैं, पढ़ नहीं पाते, और जो ज्यादा पढ़ लिए, वो घर नहीं आते
चिंतन मनन
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