दृष्टि
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एक गुरुकुल में बहुत सारे बच्चे पढ़ा करते थे। इनमें से दो बच्चों गुर्वित औऱ तन्विक में गहरी दोस्ती थी। ये दोनों ही बच्चे गुरुकुल के सबसे होशियार बच्चे थे। एक दिन उस गुरुकुल में उनके आचार्य दोनों को घुमाने बाहर ले गए। घूमते हुए वो तीनों एक खूबसूरत बाग में पहुँच गए।
वह तीनों वहां आस-पास की प्राकर्तिक शोभा का आनंद ले रहे थे, तभी उन लोगों की नज़र आम के एक पेड़ पर पड़ी। उन्होंने देखा कि वहां एक बालक डंडा लेकर आया और पेड़ के तने पर डंडा मारकर फल तोड़ने लगा।
आचार्य ने अपने साथ आये दोनों बच्चों से आम के पेड़ की तरफ इशारा करते हुए पूछा, क्या तुम दोनों ने यह दृश्य देखा?
“हाँ गुरुदेव, हमने उस बालक को डंडा मारकर आम का फल तोड़ते हुए देखा” – बच्चों ने उत्तर दिया।
गुरु ने उनमे से एक बच्चे से पुछा- इस दृश्य के बारे में तुम्हारी क्या राय है?
उस बच्चे ने जवाब दिया – गुरुदेव मैंने देखा कि कैसे उस बालक को डंडा मारकर आम के पेड़ से फल तोडना पड़ा? मैं सोच रहा हूँ कि जब वृक्ष भी बगैर डंडा खाए फल नहीं देता, तब किसी मनुष्य से कैसे काम निकाला जा सकता है?
यह दृश्य हमें एक महत्वपूर्ण सामाजिक सत्य का आइना दिखा रहा है कि यह दुनिया राजी-खुशी नहीं मानने वाली है। यहाँ दबाव डालकर ही समाज या लोगों से कोई काम निकाला जा सकता है।
गुरु ने अब दूसरे बच्चे से पूछा – तुमने भी डंडा मारकर फल तोड़ने वाला यह दृश्य देखा, तो तुम्हारी इस बारे में क्या राय है
दूसरा बच्चा बोला – गुरूजी यह द्रश्य देखकर, मुझे कुछ और ही लग रहा है। जिस प्रकार आम का यह पेड़ डंडे खाकर भी उस बालक को मधुर आम दे रहा है, उसी प्रकार व्यक्ति को भी स्वयं दुःख सहकर भी दूसरों को हमेशा सुख देना चाहिए। कोई अगर हमारा अपमान भी करे तो बदले में हमें उसका उपकार करना चाहिए।
यही सज्जन व्यक्तियों का धर्म है।
यह कहकर वो गुरूदेव का चेहरा देखने लगा।
गुरुदेव मुस्कुराये और बोले- देखो बच्चों जीवन में दृष्टि बहुत महत्वपूर्ण है। अभी अभी तुम्हारे सामने घटना एक ही घटी, लेकिन तुम दोनो ने उसे अलग-अलग रूप में ग्रहण किया, क्योंकि तुम्हारी दृष्टि में भिन्नता है।
मनुष्य अपनी द्रष्टि के अनुसार ही जीवन के किसी प्रसंग की व्याख्या करता है, उसी के अनुरूप कार्य करता है और यूं कहे कि उसी के मुताबिक फल भी भोगता है।
गुरु ने पहले बच्चे से कहा, तुम सब कुछ अधिकार से/ डराकर हासिल करना चाहते हो, वहीँ तुम्हारा मित्र प्रेम से पाना चाहता है
अगर हम इस कहानी में सिर्फ घटना को देखने के नज़रिए पर फोकस करें तो आप यकीन मानिये परिस्थितियों को देखने का हमारा नजरिया ही हमारी ज़िन्दगी की दशा और दिशा तय कर सकता है। आप अपने आस-पास ढूंढेंगे तो आप को कुछ लोग ऐसे जरूर नज़र आ जायेंगे जो हमेशा खुश दिखाई देते हैं। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि उनके जीवन में सिर्फ खुशियाँ और सफलता ही है, इसलिए वो हर पल खुश नज़र आते हैं। उनके जीवन में भी दुःख, तकलीफ़, असफलता, चिंता, तनाव है लेकिन उनका इन्हें देखने का नजरिया सकारात्मक है, इनसे निपटने का तरीका सकारात्मक है, इसलिए वो हमेशा खुश रह पाते हैं और हाँ कई लोग उन्ही परिस्थितयों में बिखर जाते हैं, उन्हें लगता है अब सबकुछ खत्म हो गया, अब इन मुसीबतों से निपटा नहीं जा सकता। क्योंकि जिन कठिन परिस्थितियों में कुछ लोग सकारात्मक बने रहते हैं वहीँ कई लोग नकारात्मकता को अपना लेते हैं और फिर चिंता, तनाव में पड़कर अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं।

चिंतन मनन
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