*इंसानियत का मार्ग
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आधी रात, सन्नाटे में झूमता एक शराबी गली से गुजर रहा था। रास्ते में खंभे की रोशनी के नीचे फटे-पुराने कपड़ों में एक डरी-सहमी लड़की खड़ी थी। आँखों में डर और आँसू लिए वह उजाले से चिपकी हुई थी। नशे में धुत बुजुर्ग ने लड़खड़ाती आवाज में पूछा, “तेरा नाम क्या है? इतनी रात यहाँ क्यों खड़ी है?”
लड़की चुप थी, उसकी नजरें दूर खड़े चार लड़कों पर थीं, जो उसे घूर रहे थे। बुजुर्ग ने उनकी तरफ देखा और उनमें से एक को पहचानते ही गरजकर देखा। डरकर वे भाग गए। लड़की की हिम्मत बढ़ी। उसने कहा, “मेरा नाम रूपा है। अनाथाश्रम से भाग आई हूँ। वे मुझे बेचने वाले थे।”
बुजुर्ग ने पूछा, “अब कहाँ जाएगी?” लड़की चुप रही।
“मेरे घर चलेगी?” उसने फिर पूछा। रूपा के मन में सवाल थे – क्या शराबी पर भरोसा करना सही होगा? लेकिन अंधेरे से डर और हालात ने उसे मजबूर कर दिया।
घर पहुँचते ही बुजुर्ग ने पत्नी से कहा, “देखो, बेटी लेकर आया हूँ। अब हम बाँझ नहीं कहलाएंगे।” पत्नी की आँखों में आँसू थे। उसने रूपा को गले लगा लिया।
परिस्थितियाँ कैसी भी हों, इंसानियत जिंदा रहनी चाहिए।
हर नशेड़ी या कमजोर दिखने वाला व्यक्ति गलत नहीं होता।
भरोसा, हिम्मत और सही फैसला मुश्किल समय में भी उम्मीद का दरवाजा खोलते हैं

चिंतन मनन
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