नई दिल्ली, भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 124ए के तहत राजद्रोह पर दंड के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राजद्रोह कानून खत्म करने की नहीं इस पर दिशा-निर्देशों की जरूरत है। अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘कानून के तहत क्या अनुमति है, क्या अस्वीकार्य है और क्या राजद्रोह के तहत आ सकता है, यह देखने की जरूरत है।’
वहीं, सालिसिटर जनरल ने कहा कि देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए। उन्होंने कहा कि राजद्रोह कानून पर मसौदा प्रतिक्रिया वकीलों द्वारा तैयार की गई है। उन्होंने सरकार को अपना जवाब दाखिल करने की अनुमति देने के लिए अदालत से सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। केंद्र सरकार की अर्जी पर अब 10 मई को इस मामले में फिर सुनवाई होगी।
इस मामले में केंद्र ने अदालत में हलफनामा दायर किया है। केंद्र सरकार ने कहा कि इसका मसौदा तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है। राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रविधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया। अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता कानून का दुरुपयोग है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।