Monday, December 8, 2025

1250 गर्भवती महिलाओं की मेडिकल रिपोर्ट पर हुआ शोध:गुड़ाखू, तंबाकू-गुटखे से गर्भवतियों में खून की कमी, शिशु भी होने लगे कमजोर

छत्तीसगढ़ में गुड़ाखू करने या तंबाकू खाने वाली महिलाओं की संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है, और अब इसके घातक नतीजे सामने आ रहे हैं। रायपुर मेडिकल कालेज के दर्जनभर से ज्यादा डाक्टरों ने 1250 गर्भवती महिलाओं की मेडिकल रिपोर्ट पर शोध किया है, जिनमें से 34.3 प्रतिशत (429) तंबाकू या मिलता-जुलता नशा करनेवाली थीं।

रिसर्च में यह बात सामने आई कि ऐसी महिलाओं में निकोटिन उनके गर्भस्थ शिशु तक पहुंच रहा है और गंभीर नुकसान पहुचा रहा है। हालात ये हैं कि तंबाकू एक्सपोजर वाली इन महिलाओं में 1.60 प्रतिशत का गर्भपात ही हो गया। इसी तरह, 2.80 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक निकलीं और तंबाकू खाने वाली 6.3 प्रतिशत महिलाओं की गर्भ की झिल्ली समय से पहले ही टूट गई।

यही नहीं, ऐसी 18.40 प्रतिशत महिलाओं की समय से पहले यानी प्री-मैच्योर डिलीवरी हुई। सबसे खतरनाक नतीजा यह आया कि तंबाकू खाने वाली महिलाओं में 1.2 प्रतिशत स्थायी रूप से बांझपन का शिकार हो गईं।

छत्तीसगढ़ में ऐसी महिलाएं काफी संख्या में हैं, जो तंबाकू, गुटका-गुड़ाखू जैसे अन्य उत्पाद का उपयोग कर रही हैं। अंबेडकर अस्पताल के स्त्रीरोग विभाग में पूरे प्रदेश से गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए भर्ती होती हैं या कांप्लीकेशन पर बाहर से रिफर होकर भर्ती की जाती हैं। ऐसी ही महिलाओं पर तंबाकू के असर से जुड़े इस रिसर्च की रिपोर्ट 19 दिसंबर 2022 को ही अमेरिका के क्यूरेस जर्नल में प्रकाशित हुई।

सीनियर माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट डॉ. नेहा सिंह ने बताया कि रिसर्च के अनुसार जो गर्भवती महिलाएं गुड़ाखू कर रही है, तंबाकू चबा रही हैं या धूम्रपान कर रही हैं, उनके गर्भस्थ शशु का जीवन संकट में है।

इस वजह से गर्भ में ही शिशु की मौत हो जा रही है, गर्भपात हो रहे हैं, जन्मजात विसंगतियों के साथ बच्चे जन्म ले रहे हैं या फिर प्रसव के दौरान अत्याधिक ब्लीडिंग से गर्भवती के लिए भी खतरा पैदा हो रहा है।

15 से कम के 10% लड़के और 5.7% लड़कियां इस नशे की आदी

ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे (गेट्स) 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 13 से 15 आयुवर्ग के 10.5 प्रतिशत युवक किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। 5.7 प्रतिशत युवतियां भी इस नशे की गिरफ्त में हैं। इनमें 8.1 प्रतिशत युवा शहर और 7.5 प्रतिशत युवा गांवों के रहनेवाले हैं। ज्यादातर किशोर अवस्था से ही नशे में फंसे हैं। जहां तक पूरे प्रदेश का सवाल है, यहां के आधे से ज्यादा यानी 53.7 प्रतिशत पुरुष और 24.6 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू या इसके उत्पादों का नशा कर रही हैं। करती है।

रिसर्च टीम में :

स्त्रीरोग विभाग की डॉ. तृप्ति नागरिया, डॉ. हिमानी पुंशी और डॉ. स्मृति नायक के अलावा माइक्रोबायोलॉजी से डॉ. नेहा सिंह तथा पीएसएम (कम्यूनिटी मेडिसिन) से – डॉ. कमलेश जैन, डॉ. निर्मल वर्मा, डॉ. मोनिका देनगनी, डॉ. शैलेंद्र अग्रवाल शामिल हैं।

शिशु की 5 दिन में मौत

अमलीडीह की 40 साल की प्रभा (बदला नाम) के शिशु की जन्म के 5 दिन बाद मृत्यु हो गई। वह वर्षों से गुड़ाखू कर रही है। कुछ साल से तंबाकू भी खाने लगी। डाक्टरों ने पाया कि तंबाकू के कारण बच्चा समय से पहले बच्चा जन्मा, कमजोर भी था। यह बात प्रभा को बताई तो उसने रोते हुए कहा – बच्चे की मौत की जिम्मेदार मैं हूं। कान पकड़ती हूं, गुडाखू करूंगी न तंबाखू खाउंगी…।

कमजोर पैदा हुआ शिशु

रायपुर की 34 साल की आशा (बदला हुआ नाम) ने शुक्रवार को अंबेडकर अस्पताल के स्त्रीरोग वार्ड में बच्चे को जन्म दिया। बच्चा बेहद कमजोर है, इसलिए उसे एनआईसीयू में भर्ती करवाना पड़ गया है। जन्म देने के बाद से आशा की हालत भी खराब है और वह आईसीयू में है। डाक्टरों के मुताबिक वह काफी एनीमिक (खून की कमी) हो गई है। वह भी वर्षों से तंबाकू खा रही है।

अब हाेगा अगला रिसर्च… शिशुओं के दिमाग पर कैसा असर

रायपुर मेडिकल कॉलेज और डॉ. अंबेडकर अस्पताल की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि तंबाकू-गुड़ाखू से निकोटिन गर्भस्थ शिशु तक पहुंच रहा है। अब अगला रिसर्च इस बात पर होगा कि शिशुओं के मस्तिष्क और शरीर पर माता के तंबाकू सेवन का क्या असर पड़ा है।

बस्तियों में आम है गुड़ाखू और गुटखा

भास्कर टीम राजधानी में आकाशवाणी चौक के पास की दो बस्तियों, तथा पंडरी और बैरनबाजार की बस्तियों में यह पता लगाने के लिए पहुंचीं कि वास्तव में महिलाओं में तंबाकू-गुड़ाखू का नशा कितना प्रचलित है। हैरतअंगेज यह है कि बुजुर्ग महिलाओं ने खुलकर गुड़ाखू की आदत तो स्वीकारी ही, यह भी कहा कि बच्चों को छोड़कर सभी ऐसे नशों की आदी हैं।

गुटखा, गुड़ाखू या सिर्फ तंबाकू का सेवन कर रही हैं। मंगलवार को दोपहर 35 साल की महिला गुड़ाखू करती दिखी। उसके हाथ में 8 रुपए वाली डिब्बी थी। वह बताने लगी कि छुटपन से ही गुड़ाखू कर रही है। एक बुजुर्ग महिला तो अपनी बहू को घर से बाहर लेकर आई और बताया कि गुटखा खाती है।

उसकी गोद में 5 महीने का बच्चा था, जो सिजेरियन से हुआ है। मां कमजोर दिखाई दे रही थी,बच्चा भी। सब जगह यही स्थिति है…। तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. कमलेश जैन ने बताया कि गर्भवती महिलाओं को नशा छोड़ने के लिए मितानिनें कह रही हैं। एडिक्ट गर्भवती महिलाओं की काउंसिलिंग करवाने के लिए भी मितानिनों से कहा गया है।

दोनों में कांप्लिकेशन

अस्पताल में बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं आ रही हैं, जिन्हें प्रसव के दौरान काफी कांप्लीकेशन (समस्या) आए। इसीलिए रिसर्च की गई और खुलासा हुआ कि ऐसी ज्यादातर महिलाएं तंबाकू और उससे बने उत्पादों की आदी हैं और इससे उन्हें तथा शिशु, दोनों को नुकसान पहुंच रहा है। इसमें आगे और भी स्टडी प्लान कर रहे हैं।
-डॉ. तृप्ति नागरिया,डीन-जेएनएम मेडिकल कॉलेज

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