Sunday, December 28, 2025

Lord Shiva : फर्जी दस्तावेजों के सहारे धार्मिक संपत्ति पर अवैध कब्जे की साजिश

Lord Shiva : भगवान शिव का कथित वारिस बनकर लबे रोड स्थित करोड़ों रुपये की कीमती 24 एकड़ जमीन हड़पने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। लंबे समय से चल रहे इस फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ, जब जमीन से जुड़े असली हितधारकों ने प्रशासन से लिखित शिकायत की। जांच शुरू होते ही दस्तावेजों में भारी गड़बड़ी और जालसाजी के सबूत सामने आए हैं।

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जानकारी के अनुसार लबे रोड क्षेत्र की यह जमीन वर्षों पुरानी बताई जा रही है, जिसका नाम राजस्व रिकॉर्ड में धार्मिक उपयोग से जुड़ा हुआ था। आरोप है कि कुछ लोगों ने साजिश रचते हुए खुद को भगवान शिव का वारिस और प्रतिनिधि बताते हुए जमीन के कागजात में हेरफेर की। फर्जी शपथपत्र, गलत उत्तराधिकार प्रमाण पत्र और कूट रचित दस्तावेजों के जरिए जमीन को अपने नाम दर्ज कराने की प्रक्रिया पूरी की गई।

बताया जा रहा है कि जमीन की कीमत वर्तमान बाजार दर के अनुसार करोड़ों रुपये में आंकी जा रही है। आरोपियों ने जमीन पर कब्जा जमाने के बाद उसे बेचने या लीज पर देने की तैयारी भी शुरू कर दी थी। इसी दौरान स्थानीय लोगों और ट्रस्ट से जुड़े कुछ सदस्यों को संदेह हुआ, जिसके बाद पूरे मामले की शिकायत प्रशासन और राजस्व विभाग से की गई।

शिकायत मिलने के बाद जिला प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के आदेश दिए। राजस्व रिकॉर्ड, रजिस्ट्री दस्तावेज और पुराने अभिलेखों की पड़ताल में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जांच में पाया गया कि भगवान शिव का वारिस बताने वाला दावा पूरी तरह फर्जी था और दस्तावेजों में कूट रचना की गई थी।

प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से जमीन से जुड़े सभी लेन-देन पर रोक लगा दी है। साथ ही संबंधित पटवारी, राजस्व निरीक्षक और अन्य कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच शुरू कर दी गई है। आशंका जताई जा रही है कि इस फर्जीवाड़े में कुछ सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत भी हो सकती है।

पुलिस ने मामले में धोखाधड़ी, कूट रचना और सरकारी रिकॉर्ड से छेड़छाड़ जैसी धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज करने की तैयारी शुरू कर दी है। अधिकारियों का कहना है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और जमीन को उसके मूल स्वरूप में सुरक्षित रखा जाएगा।

प्रशासन ने आम लोगों से भी अपील की है कि किसी भी धार्मिक या सार्वजनिक संपत्ति से जुड़े लेन-देन में पूरी सतर्कता बरतें और संदिग्ध गतिविधियों की तुरंत सूचना दें। यह मामला न सिर्फ आस्था के नाम पर किए गए फर्जीवाड़े को उजागर करता है, बल्कि सरकारी रिकॉर्ड की सुरक्षा और पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।

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