Thursday, September 19, 2024

चिंतन मनन

मंथन पूर्णता का
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ईश्वर के अलावा कोई भी पुर्ण नहीं है। जब हम दुसरो में कमियां खोजते हैं तो यह एक अंन्तहिन प्रक्रिया है हम थक जाएंगे लेकिन कमियां कभी भी खत्म नहीं होगी।
दुसरो की कमियां ठीक करना हमारे लिए असम्भव है। जब तक दुसरा व्यक्ति स्वयं नहीं चाहता कि वो अपनी ‌कमियां को सुधारें। जब दुसरो को सुधारना हमारे बस में है ही नहीं तो, हमें दुसरो को सुधारने में अपना समय और श्रम बर्बाद नहीं करना चाहिए। इससे हमारी एनर्जी और समय दोनों ख़राब होते हैं हमें अपनी एनर्जी स्वयं की कमियां और ग़लत आदतों को सुधारने में लगानी चाहिए। यदि हम स्वयं में झांकेंगे तो थोड़ी सी कोशिश ‌में हम अपनी कमियां को समझ सकते हैं और उनमें सुधार भी कर सकते हैं क्योंकि यह हमारे बस में है ‌और हमारे लिए सम्भव भी है।
पर हम ठहरे महा ज्ञानी सो ‌अपने स्वयं की कमियों को ठीक ना करके दुसरो की कमियों ‌को ठीक करने ‌की चाह रखते हैं जो कि हमारे लिए असम्भव है।
हम माने या ना माने हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण भी यही है कि हम दुसरो से अपेक्षाएं कुछ ज्यादा ही रख लेते हैं लेकिन यदि हमें सुख का अनुभव करना है तो हमें दुसरो से किसी भी ‌ प्रकार की ‌चाह (अपेक्षा) नहीं रखनी चाहिए बल्कि अपेक्षा केवल स्वयं से रखनी चाहिए। इससे दुसरे हमारे लिए कुछ भी करेगा हमारी अपेक्षाओं से ज्यादा करेगा और तभी हम सही मायने में सुख शांति से अपना जीवन यापन कर सकते हैं। बड़ा मुश्किल काम है पर यदि सकुन से रहना है तो ऐसा करने कि कोशिश तो करनी ही पड़ेगी यह जीवन का सबसे मुश्किल योग है लेकिन यदि हम इसे साध लेते हैं तो मेरा मानना है इससे हमारा वर्तमान तो सुख पुर्वक गुज़ारेगा और हमारी यह आदत हमारे वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम को भी मज़े से काटने में हमारे सहयोगी की भूमिका निभाएंगी।
मित्रों कोई भी कार्य मुश्किल नहीं होता है बस हम उसे कार्य को करने की शुरुआत करनी होती है कहते हैं हजारों मिल के सफर कि शुरुआत एक कदम चलने से होती है। किसी भी नई सोच की शुरुआत कठीन हो सकती है पर असम्भव नहीं होती और कोशिश ‌भी हमे स्वयं को ही करनी होगी। ‌आवो आज और अभी से ऐसा करने की शुरू आत करते हैं।

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