Thursday, September 19, 2024

चिंतन मनन

सच्चा सुख
_______________

एक व्यक्ति के पास बहुत सा धन था, इतना कि अब और धन पाने की इच्छा नहीं थी। जितना था, उसका भी उपयोग नहीं हो पा रहा था।
मृत्यु समीप आने लगी थी। न बेटे थे, न बेटियां थीं, कोई पीछे न था और जीवन धन बटोरने में बीत गया था।
वह तथाकथित महात्माओं के पास गया, कि मुझे कुछ आनंद का सूत्र दो। महात्मा, पंडित, पुरोहित, सब के द्वार खटखटाए। खाली हाथ लौटा।
फिर किसी ने कहा कि एक साधू को हम जानते हैं, शायद वही कुछ कर सके। उनके ढंग जरूर अनूठे हैं; इसलिए चौंकना मत।
उनके रास्ते उनके निजी हैं; उनकी समझाने की विधियां भी थोड़ी अजीब होती हैं। मगर कोई न समझा सके, तो जिनका कहीं कोई इलाज नहीं है, उस तरह के लोगों को हम वहां भेज देते हैं।जिनका कहीं कोई इलाज नहीं, उनके लिए वहां सुनिश्चित उपाय है।
उस धनी ने एक बड़ी पोटली भरी हीरे—जवाहरातों से और पहुंच गया साधू के पास।
साधू बैठे थे एक झाड़ के नीचे। धनी व्यक्ति ने पोटली पटक दी उनके सामने और कहा कि इतने हीरे—जवाहरात मेरे पास हैं, मगर सुख का कण भी मेरे पास नहीं। मैं कैसे सुखी होऊं ?
साधू ने आव देखा न ताव, उठाई पोटली और भाग लिए ! वह व्यक्ति एक क्षण तो समझ ही नहीं पाया कि ये क्या हो रहा है।
महात्मागण तो ऐसा नहीं करते ! एक क्षण तो वह ठिठका रहा, ! फिर उसे होश आया कि इस साधू ने तो उसे लूट लिया, मारे गए, सारी जिंदगी भर की कमाई साधु ले भागा।
हम सुख की तलाश में आए थे, और दुःखी हो गए। व्यक्ति भागा, चिल्लाया कि लुट गया, बचाओ ! साधु चोर है, बेईमान है, भागा जा रहा है !
साधु ने पूरे गांव में उस व्यक्ति से चक्कर लगवाया। साधू का गांव तो जाना—माना था, गली—कूंचे से पहले से पहचान थी, इधर से निकले, उधर से निकल जाए।
भीड़ भी पीछे हो ली— भीड़ तो साधू को जानती थी ! कि जरूर कोई विधि होगी ! गांव तो साधू से परिचित था, उसके ढंगों से परिचित था। धीरे-धीरे आश्वस्त हो गया था कि वह जो भी करे, वह चाहे कितना भी अबूझ मालूम पड़े, भीतर कुछ राज होता है।
लेकिन उस व्यक्ति को तो कुछ पता नहीं था। वह पसीना-पसीना, जीवन मे कभी भागा भी नहीं था इतना, थका-मांदा, साधू उसे भगाता हुआ, दौड़ाता हुआ, पसीने से लथपथ कराता हुआ वापिस अपने झाड़ के पास ले आया। जहां उसका घोड़ा खड़ा था। साधु ने लाकर पोटली वहीं घोड़े के पास पटक दी और स्वयं झाड़ के पीछे छिप कर खडे हो गए।
वह व्यक्ति लौटा, पोटली नीचे पड़ी थी, घोड़ा खड़ा था उसने पोटली उठा कर छाती से लगा ली और कहा कि हे! हे परमात्मा ! तेरा बहुत बहुत धन्यवाद !
आज मुझ जैसा सुखी इस दुनिया में और कोई भी नहीं मुझे मेरा धन वापिस मिल गया!
साधू वृक्ष के पीछे से झांके और , कहा : कुछ सुख मिला ? यही राज है। यही पोटली पहले तुम्हारे पास थी, इसी को लेकर तुम यहां वहां घूम रहे थे, और सुख का कोई पता नहीं था। अब वही पोटली वापिस तुम्हारे हाथ में है।
लेकिन बीच में फासला हो गया, थोड़ी देर को पोटली तुम्हारे हाथ में न थी, थोड़ी देर को पोटली से तुम वंचित हो गए थे, अब तुम कह रहे हो-
हे प्रभु, धन्यवाद तेरा कि आज मैं खुश हूं, आज पहली बार आनंद की थोड़ी झलक मिली।
शर्म नहीं आती ? बैठो घोड़े पर और भाग जाओ, नहीं तो मैं पोटली फिर छीन लूंगा। रास्ते पर लगो ! रास्ता तुम्हें मैंने बता दिया है ।
लोग ऐसे ही हैं। लोग ही नहीं, सारा अस्तित्व ऐसा है। जिसे हम गंवाते हैं, उस समय उसका मूल्य पता चलता है। जब तक गंवाते नहीं तब तक मूल्य पता नहीं चलता।
जो तुम्हें मिला है, उसकी तुम्हें दो कौड़ी की कदर नहीं है। जो खो गया, उसके लिए तुम रोते हो। जो खो गया, उसका अभाव खलता है।

.

Related Posts

Comments

Recent Stories