2020 और 2021 शेयर बाजार निवेशकों के लिए काफी अलग साल थे। एक ऐसा समय जहां बाजार आगे की ओर बढ़ रहे थे और पैसा कमाना काफी आसान लग रहा था। जरूरत थी तो बस निवेश करने की। इक्विटी न केवल निवेशकों के पसंदीदा असेट क्लास के रूप में उभरी, बल्कि कई तो कुछ ज्यादा ही पैसा शेयर बाजार में लगा डाले।
अब पुरानी रणनीति कामयाब नहीं है
हालांकि अब 2022 में वह रणनीति कामयाब होती नहीं दिख रही है। इक्विटी बाजार अपने रिकॉर्ड ऊंचाई से काफी नीचे हैं। बाजार में अस्थिरता हावी हो गई है। कई लोगों को अब समझ में नहीं आ रहा है कि अलोकेशन में विविधीकरण या डायवर्सिफिकेशन कितना जरूरी होता है। निवेश के समय, विविधीकरण बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए अब एक मल्टी-असेट की रणनीति सफल निवेश की कुंजी बन गई है।
मल्टी असेट कई क्लास में निवेश करते हैं
ICICI प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के जोनल हेड (उत्तर भारत) पंकज जवांजल कहते हैं कि सीधे शब्दों में कहें तो मल्टी-असेट निवेश में इक्विटी, फिक्स्ड इनकम, कैश और सोने जैसे विभिन्न असेट क्लासों में निवेश करना शामिल है। अलग-अलग आर्थिक और बाजार की परिस्थितियों में विभिन्न असेट क्लास अलग-अलग व्यवहार करते हैं।
सबका अपना एक समय होता है
वे कहते हैं कि प्रत्येक असेट क्लास का प्रदर्शन करने का अपना एक समय होता है। विविधीकृत होने से निवेशकों को बाजार के विभिन्न चक्रों से लाभ उठाने में मदद मिलती है। विविधीकृत का मतलब कई सेक्टर्स या असेट में निवेश करने से है। इसके अलावा, मल्टी-असेट निवेश पोर्टफोलियो की अस्थिरता को रोकने में मदद कर सकता है।
जवांजल कहते हैं कि एक असेट क्लास में गिरावट संभावित रूप से दूसरे असेट क्लास में तेजी से संतुलित हो सकती है। लंबी अवधि के दौरान, पोर्टफोलियो को जोखिम से मुक्त करने के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
साल की शुरुआत में अनुमान लगाना मुश्किल
जब निवेश की बात आती है, तो किसी भी फाइनेंशियल वर्ष की शुरुआत में, कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता है कि उस वर्ष कौन सा असेट क्लास बेहतर प्रदर्शन करेगा। अधिक से अधिक, एक व्यक्ति जो कर सकता है वह एक ठीक-ठाक अनुमान लगा सकता है। यह एक खेल की शुरुआत में विजेता का अनुमान लगाने जैसा है।
फीफा में भी विजेता बदलते रहते हैं
फीफा विश्व कप विजेता हो या असेट क्लास, विजेता हर साल बदलते रहते हैं। पिछले पांच फीफा विश्व कप में, पांच अलग-अलग देशों ने कप जीता है। 2002 में ब्राजील, 2006 में इटली, 2010 में स्पेन, 2014 में जर्मनी और 2018 में फ्रांस। इसी तरह भारतीय शेयर बाजार ने 2012 में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, लेकिन 2013 का साल ग्लोबल इक्विटी का रहा।


