Sunday, July 27, 2025

दान

एक समय की बात है एक नगर में एक कंजूस राजेन्द्र नामक व्यक्ति रहता था उसकी कंजूसी सर्व प्रसिद्ध थी। वह खाने, पहनने तक में भी कंजूस था।
एक बात उसके घर से एक कटोरी गुम हो गई और कटोरी के दुःख में राजेन्द्र ने 3 दिन तक कुछ नही खाया। परिवार के सदस्य भी उसकी कंजूसी से दुखी थे। मोहल्ले में उसकी कोई इज्जत न थी, क्योंकि वह किसी भी सामाजिक कार्य में दान नहीं करता था।
एक बार उस राजेन्द्र के पड़ोस में धार्मिक कथा का आयोजन हुआ। वेदमंत्रों व उपनिषदों पर आधारित कथा हो रही थी।
राजेन्द्र को सद्बुद्धि आई तो वह भी कथा सुनने के लिए सत्संग में पहुँच गया।
वेद के वैज्ञानिक सिद्धांतों को सुनकर उसको भी रस आने लगा क्योंकि वैदिक सिद्धान्त व्यावहारिक व वास्तविकता पर आधारित एवं सत्य-असत्य का बोध कराने वाले होते है।
कंजूस को और रस आने लगा उसकी कोई कदर न करता फिर भी वह प्रतिदिन कथा में आने लगा।
कथा के समाप्त होते ही वह सबसे पहले शंका पूछता इस तरह उसकी रूचि बढती गई।
*वैदिक कथा के अंत में लंगर का आयोजन था इसलिए कथा वाचक ने इसकी सूचना दी कि कल लंगर होगा एवं जो श्रद्धा से कुछ भी लाना चाहे या दान करना चाहे तो कर सकता है।
अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार सभी लोग कुछ न कुछ लाए। कंजूस के हृदय में जो श्रद्धा पैदा हुई वह भी एक गठरी बांध सर पर रखकर लाया।
भीड़ काफी थी कंजूस को कोई भी आगे नहीं बढ़ने दे रहा था ;
सभी दान देकर यथास्थान बैठ गए।
कंजूस की बारी आई तो सभी लोग उसे देखने लगे। कंजूस को विद्वान की ओर बढ़ता देख सभी को हंसी आ गई क्योंकि सभी को मालूम था कि यह महाकंजूस है।
उसकी गठरी को देख लोग तरह तरह के अनुमान लगाते ओर हँसते लेकिन कंजूस को इसकी परवाह नही थी।
*कंजूस ने आगे बढ़कर विद्वान ब्राह्मण को प्रणाम किया और गठरी उनके चरणों में रखकर खोली तो सब की आँखें फटी रह गई।
कंजूस ने अपने जीवन की सारी अमूल्य संपत्ति, गहने, जेवर, हीरे-जवाहरात सब कुछ को दान कर दिया।
जब वह यथास्थान जाने लगा तो विद्वान ने कहा,महाराज! आप वहाँ नहीं, यहाँ बैठिये।

कंजूस बोला,पंडित जी ! यह मेरा नहीं यह तो मेरे धन का आदर है अन्यथा मैं तो रोज आता था और यहीं पर बैठता था, तब मुझे कोई न पूछता था।
ब्राह्मण बोला,नहीं, मान्यवर ! यह आपके धन का नहीं, बल्कि आपके महान त्याग (दान) का आदर है।
यह धन तो थोड़ी देर पहले आपके पास ही था, तब इतना आदर-सम्मान नहीं था जितना की अब आपके त्याग (दान) में है , इसलिए आप आज से एक सम्मानित व्यक्ति बन गए है।क्योंकि दान करने से ना केवल यहाँ परलोक में भी सम्मान मिलता है अतः यथाशक्ति दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए।

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