कोरबा ।* जब-जब दुनिया में अशांति बढ़ी, शांति की खोज भी बढ़ी और लोगों का आध्यात्म की ओर रूझान बढ़ने लगा। धार्मिक कथा आज की आवश्यकता बन गई है। ज्यों-ज्यों भौतिक युग बढ़ रहा है, लोगों में अशांति बढ़ रही है और सभी शांति की खोज करने लगे हैं। संयुक्त परिवार टूटने का कारण भी यही है और लोग एकल परिवार की ओर बढ़ रहे हैं। यह हमारी भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। उक्ताशय का उद्गार विश्व विख्यात कथावाचक एवं जीवन प्रबंधन गुरू पं. विजय शंकर मेहता के हैं। वे मातनहेलिया परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में प्रवचन देने कोरबा प्रवास पर पहुंचे हैं और आज उन्होंने कथा स्थल जश्न रिसोर्ट में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर मातनहेलिया परिवार के सदस्य राजकुमार अग्रवाल एवं भगवानदास अग्रवाल सहित अन्य सदस्य उपस्थित थे।
उन्होंने पत्रकारों के पूछे सवालों का सटिक जवाब दिया और श्रीमद् भागवत कथा एवं जीवन प्रबंधन के संबंध में पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब दिया। एक प्रश्न के उत्तर में पं. श्री मेहता ने कहा कि हमारी जीवन शैली में चार चीजों का प्रभाव पड़ता है। 25 प्रतिशत माता के 25 प्रतिशत पिता के, 25 प्रतिशत हमारे प्रारब्ध के एवं 25 प्रतिशत हमारी अपनी कर्मशीलता का प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने कहा आज हर स्तर पर नैतिक पतन हो रहा है, चाहे सिनेमा की बात करें या फिर राजनीति की। उन्होंने कहा कि वे दूसरी बार कोरबा प्रवास पर पहुंचे हैं। पहली बार वे एक हनुमान जी के कार्यक्रम में अल्प प्रवास पर आए थे। उन्होंने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के आभारी हैं, यहां उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में काफी नाम कमाया और अब भगवत भक्ति में छत्तीसगढ़वासियों का अपार आशीर्वाद मिल रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों को काम के प्रति जब श्रद्धा हो तो खुशियां अपार मिलती हैं। मैंने 20 साल पत्रकारिता की और रायपुर भास्कर संस्करण का बतौर संपादक काम किया, तब भी खुश था और मैं अब हनुमान जी के भक्त के रूप में भी आनंदित हूं।
एक प्रश्न के जवाब में कहा कि राजनीति में 50 प्रतिशत राज हो और 50 प्रतिशत नीति हो तो संतुलन बना रहता है, लेकिन अब तो राजनीति में 90 प्रतिशत राज और सिर्फ 10 प्रतिशत नीति बची है। उन्होंने कहा कि सत्ता पाने के लिए लोग धर्म का उपयोग करते हैं। राजनीति भी यही है। सदियों से राजनीति के नाम पर धर्म का लाभ लेते आ रहे हैं।
बढ़ते अपराध के मामले में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पं. विजय शंकर मेहता ने कहा कि जिनका विचार देह पर टिका होता है, वे पाश्विक प्रवृत्ति के होते हैं और ऐसे लोग ही रिश्तों का खून करते हैं। यह सब आज की लाईफ स्टाईल का नतीजा है। समाज में अपराध कम हों, इसके लिए हमें नई पीढ़ी के लालन पालन का तरीका बदलना होगा।
60 से 90 वर्ष की उम्र वाले पर हम शोध करते हैं तो नतीजा निकलता है कि 60 प्लस के लोग माता-पिता के आज्ञाकारी होते हैं, जबकि आज शिक्षा प्रणाली ऐसी हो गई है कि नई पीढ़ी स्वच्छन्द हो गई है और माता – पिता के काबू में नहीं रहते।
आज नई पीढ़ी को आध्यात्म से जोड़ने की आवश्यकता है, ताकि नई पीढ़ी संस्कारवान एवं आदर्श नागरिक बने और भारतीय समाज प्राचीन परंपराओं एवं संस्कृति का संवाहक बन सके। उन्होंने जीवन प्रबंधन के गुर भी सिखाए।

जब – जब अशांति बढ़ी, शांति की खोज बढ़ी और आध्यात्म की ओर रूझान बढ़ा – पं. विजय शंकर मेहता*
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