बड़ा दिल
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बात कुछ दिनों पूर्व की है,बाहर से किसी के मांगने की आवाज आई। सुबह से मांगने वालों का तांता सा लगा हुआ था तो पुनः बाहर जाने में थोड़ी झुंझलाहट सी महसूस हुई, लेकिन फिर आदत से मजबूर हो बाहर देखने गई।
एक श्याम वर्ण की दुबली पतली औरत खाने के लिए कुछ मांग रही थी। उसकी काया देख मैं उसके लिए कुछ खाने के लिए लेकर बाहर गई। साथ में एक 9-10 वर्ष के लड़के को देख मैंने उससे पूछा कि क्या यह तुम्हारा लड़का है? क्या यह पढ़ता है? तो उसने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा कि दीदी यह लड़का मुझे मंदिर की सीढ़ियों पर मिला था।
वहां यह भीख मांगा करता था। मैं इसे अपने साथ घर ले आई और अब मैं ही इसकी देखभाल करती हूं। मैंने इसका दाखिला स्कूल में भी कराया है। इसका भाग्य बन जाए और मुझे क्या चाहिए।
मन ही मन उस महिला के प्रति सम्मान का भाव जगा। एक गरीब महिला जिसके पास स्वयं के लिए मुश्किल से कुछ होगा एक अनाथ बच्चे को पाल रही थी और हम लोग इतने सक्षम होकर भी इस तरह के कदम उठाने में झिझकते हैं। ऐसे में कभी-कभी लगता है कि जीवन में इतना आगे बढ़ कर भी क्या जीवन में कुछ अच्छा कर पाते हैं हम ? इस एक घटना ने मुझे काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।

चिंतन मनन
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