Monday, December 8, 2025

चिंतन मनन

आलस्य
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एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर- सम्मान करता था। गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे। लेकिन वह शिष्य आलसी था। आज के काम को कल के लिए छोड़ देता था।
गुरूजी चिंतित रहने लगे कि उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाए। उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बनाई।
एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा शिष्य के हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा, मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए देकर, कहीं दूसरे गांव जा रहा हूं। जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जाएगी। पर, याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के बाद मैं इसे तुमसे वापस ले लूंगा।’
शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ, लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते हुए बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा, तब वह कितना प्रसन्न-सुखी रहेगा। फिर वह दूसरे दिन प्रातःकाल जागा, उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है।
उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरुजी के काले पत्थर का लाभ जरूर उठाएगा। उसने निश्चय किया कि वह बाजार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लाएगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा।
उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के बाद ही सामान लेने निकलूंगा। भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी। वह थोड़ी देर आराम करने लग गया। आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नींद की गहराइयों में खो गया। जब वह उठा तो सूर्यास्त होने को था।
अब वह बाजार की तरफ भागने लगा, लेकिन रास्ते में ही उसे गुरुजी मिल गए। उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा, लेकिन गुरुजी नहीं माने उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा। वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है। उसने प्रण किया कि अब वह कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा। सभी काम समय पर पूरा करेगा

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