Monday, December 8, 2025

चिंतन मनन

हमारा दिया हमें वापस मिलता है
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एक राज्य में बहुत पानी गिरने से बाढ़ आ गई थी, वहां के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मिल कर गांव गांव से चंदा, खान पान की चीजें, कपड़े आदि लेकर जमा करना शुरु किया ताकि बाढ़ से पीड़ित लोगों की कुछ मदद कर सके.
हर कोई अपनी अपनी इच्छा और हैसियत के अनुसार कुछ न कुछ दे रहा था.
जब वे एक संपन्न परिवार के घर गये तो उनका बच्चा बहुत उत्साहित हुआ कि उन्हें वे बहुत कुछ दे सके पर जब वह अपने मां बाप से कहने लगा तो वे कहने लगे, “ऐसे तो मांगने वाले बहुत आते रहेंगे तो क्या सारा घर लुटा दोगे, जाओ वो एक फटी हुई पुरानी चादर पड़ी है दे दो उन्हें.”
कुछ घंटों बाद पानी का बहाव और बढ़ गया और उस परिवार का घर भी पानी से लदालद हो गया. फिर उन्हें भी घर छोड़ कर उस धर्मशाला में जाना पड़ा जहां सभी पीड़ित लोग आये हुए थे.
बरसात की वजह से ठंड भी काफी लग रही थी. उन्होंने वहां से कुछ कंबल या चादर की याचना की. कार्यकर्ताओं ने कहा, “भाई जो काफी समय से, यहां सारे लोग आ चुके हैं , हमने सभी में सब बांट लिया है, देखता हूं कुछ बचा है क्या?”
जब उसने देखा तो एक चादर दिखी और ले आया. चादर काफी फटी हुई थी.
चादर देते वक्त उसने कहा, “माफ करना भाई कुछ रहा तो नहीं सिवा इस फटी चादर के. इसी से गुजारा कर लो. यह शायद नहीं बचती, फटी है इसलिये बच गई है.”
अब वे तीन भला उस फटी चादर में कैसे गुजारते? उन्होंने वह चादर अपने बच्चे को ओढ़ दी.
जब बच्चे ने वह देखी तो कहने लगा, हमारा ही दिया हमें वापस मिल गया पिताजी!!
पिता बेटे के सामने निरुत्तर हो गया,उसे पछतावा हो रहा था कि अगर उस वक्त उसने मदद की होती तो आज परेशानी नही होती।
जैसे वह परिवार संपन्न था उसके बावजूद भी उन्होंने फटी मैली चादर ही दी जोकि उन्हें ही वापस मिली. अगर वे कुछ अच्छी रजाईयां या कंबल देते तो हो सकता है वो उन्हीं के काम में आते।
हमारे मन में जैसी भावना हो वैसी ही भावना हमें वापसी में मिलती है. और हमारा ही दिया हुआ हमें वापस मिलता है… अगर अच्छा दो तो अच्छा ही वापस भी आयेगा।

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