Wednesday, December 10, 2025

चिंतन मनन

अपनी सम्पत्ति
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एक सेठ थे। उनके पास लाखों रुपए की संपत्ति थी। बड़े हवेली थी, देश-विदेश में फैला कारोबार था, तिजोरियां में बंद पैसा था।
एक दिन एक महानुभाव उनसे मिलने आए। बातचीत में उन्होंने कहा- “सेठजी, अब तो महंगाई बेहिसाब बढ़ गई है। चीजों के दाम दुगने हो गए हैं। आपकी संपत्ति भी बढ़कर अब करोड़ों रुपए की हो गई होगी ?”
सेठ ने गंभीरता से उनकी ओर देखा, फिर बोले- “मेरी संपत्ति करोड़ों रुपए की ?”
उन महानुभाव ने मुस्कराकर कहा- “सेठजी, आप घबराइए नहीं, मैं राजस्व विभाग का आदमी नहीं हूं| मैंने तो सहजभाव से कह दिया था कि चीजों के दाम बढ़े हैं तो आपकी जमीन-जायदाद के दाम भी बढ़ गए होंगे”।
सेठ बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के आदमी थे| विरक्त भाव से उन्होंने कहा- “मेरी संपत्ति है कहां! जिसे तुम मेरी संपत्ति कहते हो, वह मेरी कहां है? जिसे मैंने दूसरों की भलाई के लिए खर्च किया, वही संपत्ति मेरी थी। अब जो बची है, उसका मैं स्वामी नहीं, न्यासी हूं। वह संपत्ति समाज की है| उसमें से मैं जितना खर्च करूंगा, सबकी भलाई के लिए उतनी मेरी हो जाएगी

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