Wednesday, November 13, 2024

चिंतन मनन

समाजिक जिम्मेदारी
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एक शहर में एक सेठ रहता था उसके पास अथाह पैसा था और वह बहुत फैक्ट्रियों का मालिक था।
एक शाम अचानक उसे बहुत बैचेनी होने लगी। डॉक्टर को बुलाकर जाँच करवाई पर कुछ नहीं निकला लेकिन उसकी बैचेनी बढ़ती गयी, रात हुई, नींद की गोलियां भी खा ली पर न नींद आने को तैयार और ना ही बैचेनी कम हुई तो वो रात को तीन बजे उठकर घर के बगीचे में घूमने लगा। उसे थोड़ा सुकून मिला तो वह सड़क पर निकल पड़ा । हजारों विचार मन में चल रहे थे और अब वो घर से बहुत दूर निकल आया था इसलिए थकान की वजह से वो एक चबूतरे पर बैठ गया
इतने में एक कुत्ता वहाँ आया और उसकी चप्पल ले गया सेठ ने देखा तो वह दूसरी चप्पल उठाकर उस कुत्ते के पीछे भागा। कुत्ता पास ही बनी एक झोपड़ी में घुस गया। सेठ भी उसके पीछे था सेठ को आता देखकर कुत्ते ने चप्पल वहीं छोड़ दी और चला गया।
सेठ ने राहत की सांस ली इतने में उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी वह करीब गया तो एक झोपड़ी में से आवाज आ रहीं थीं। उसने झोपड़ी के फटे बोरे में झाँक कर देखा तो वहाँ एक औरत फटेहाल मैली सी चादर पर दीवार से सटकर रोते हुए बोल रही है — हे भगवान मेरी मदद कर ओर रोती जा रहीं है।
सेठ के मन में आया कि यहाँ से चले जाओ, कहीं कोई गलत ना सोच लें।
वो थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे लगा कि आखिर वो क्यों रो रहीं हैं, उसको तकलीफ क्या है और उसने अपने दिल की सुनी और जाकर दरवाजा खटखटाया उस स्त्री ने दरवाजा खोला और सेठ को देखकर घबरा गयी।
सेठ ने हाथ जोड़कर कहा तुम घबराओं मत, मुझे तो बस इतना जानना है कि तुम रो क्यों रही हो
स्त्री के आखों में से आँसू टपकने लगें और उसने पास ही गुदड़ी में लिपटी 7-8 साल की बच्ची की ओर इशारा कर रोते हुए कहने लगी कि मेरी बच्ची बहुत बीमार है उसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा और में तो घरों में जाकर झाड़ू-पोछा करके जैसे-तैसे पेट पालती हूँ तो कैसे इलाज कराउ इसका?
सेठ ने कहा— तो किसी से माँग लो।
वह बोली मैने सबसे माँगकर देख लिया खर्चा बहुत है कोई भी देने को तैयार नहीं।
सेठ ने कहा तो ऐसे रात को रोने से मिल जायेगा क्या?

उसने कहा कल एक संत यहाँ से गुजर रहे थे तो मैने उनको मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा बेटा– तुम सुबह 4 बजे उठकर अपने ईश्वर से माँगो वो सबकी सुनता है तो तुम्हारी भी सुनेगा
इसलिए में उससे माँग रही थीं और वो बहुत जोर से रोने लगी।

ये सब सुनकर सेठ का दिल पिघल गया और उसने तुरन्त फोन लगाकर एम्बुलेंस बुलवायी और उस लड़की को एडमिट करवा दिया।
डॉक्टर ने डेढ़ लाख का खर्चा बताया तो सेठ ने उसकी जवाब दारी अपने ऊपर ली, और उसका इलाज कराया।
उस महिला को अपने यहाँ नौकरी देकर अपने बंगले के सर्वेन्ट क्वाटर में जगह दी और उस लड़की की पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया।
वो सेठ कर्म प्रधान तो था पर नास्तिक भी अब उसके मन में सैकड़ो सवाल चल रहे थे। क्योंकि उसकी बैचेनी उसी वक्त खत्म हो गयी थी जब उसने एम्बुलेंस को बुलवाया। वह यह सोच रहा था कि आखिर कौन सी ताकत है जो मुझे वहाँ तक खींच ले गयीं?
अब सेठ समझ चुका था कि कर्म के साथ सेवा भी कितनी जरूरी है क्योंकि इतना सुकून उसे जीवन में कभी भी नहीं मिला था।
अतः यह ध्यान रखें कि मानव और प्राणी सेवा का धर्म ही असली भक्ति हैं। यदि ईश्वर की कृपा पाना चाहते हो तो इंसानियत अपना लो और समय-समय पर उनकी मदद करो जो लाचार और बेबस है।

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