Thursday, September 19, 2024

चिंतन मनन

अनजान बुजुर्ग
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जब मैं अपने विद्यालय एक बजे खत्म होने के बाद सीधा घर नहीं गया था क्योंकि मुझे मेरे साथी शिक्षक तन्विक का फोन आया था जिसने मुझे जोधपुरी कचोरी वाले के सामने गुरु ईमित्र के पास रुकने के लिए कहा था। उसे कुछ शॉपिंग करनी थी इसलिए उसने कहा था, “नवनीत तुम रुकना, साथ में जायेंगे।हम दोनों हमेशा एक साथ ही शॉपिंग करने जाते थे।
उस ईमित्र के पास पार्किंग के लिए कुछ लोहे के एंगल लगाए हुए थे। मैं उन्हीं पर चढ़कर बैठ गया और तन्विक का इंतजार करने लगा।
एक 70-72 साल का बुजुर्ग आदमी, आंखों पर मोटे कांच वाले चश्मे, मेली धोती और कुर्ता पहने मेरे पास आया क्योंकि मैं लोहे के एंगल्स पर 3-4 फुट ऊंचाई पर बैठा था। उसने मेरे घुटनों को छुआ और बोला, “बेटा, एक कचोरी खरीद कर दे दोगे तो बहुत अच्छा होगा..! बहुत ज्यादा भूख लगी है।”
मैंने जब उस बुजुर्ग की तरफ देखा तो वह मुझे रोजाना दिख रहे भिखारियों में से नहीं लगे। उन्हें देखकर ऐसा भी नहीं लग रहा था कि वह हर दिन भीख मांगते होंगे!
ऐसे अचानक किसी बुजुर्ग ने मेरे पैरों को हाथ लगाया तो मुझे बहुत अजीब महसूस हुआ। मैं तुरंत एंगल से कूदकर नीचे खड़ा हो गया। मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और ₹50 निकालकर उस बुजुर्ग को देते हुए कहा, “अंकल, आपको भूख लगी है? तो यह लीजिए ₹50, कुछ खा लीजिए।”
बुजुर्ग ने कहा, “नहीं बेटा, पैसे मत दो, बस एक कचोरी लाकर दे दो। उतना ही बहुत है मेरे लिए।”
“ठीक है, मैं ला कर देता हूं, आप यहीं बैठिए,” कहकर मैं कचोरी की दुकान में गया और एक कचोरी खरीद कर लाया और बुजुर्ग को खाने के लिए दिया। बुजुर्ग नीचे बैठकर कचोरी खाने लगे। मेरी तरफ देख कर वह बोले, “ऊपर मत बैठो, गिर जाओगे। यहां बैठो मेरे पास, कोई साथ बैठेगा तो मुझे भी दो निवाले अच्छे से खा जायेंगे।” मैं उनका कहना टाल नहीं पाया और उनके साथ ही बैठ गया। फिर मैंने ऐसे ही उनसे सवाल करना शुरू किया, “कहां से आए हैं? कहां जाएंगे? किससे मिलने आए हैं?” वगेरह वगेरह।
“मैं? मैं नयासर से आया हूं। एक छोटे से गांव में रहता हूं। यहां झुंझुनूं में मेरा तुम्हारी उम्र का एक बेटा है। एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर है, उससे मिलने आया हूं। 2 साल पहले उसकी शादी हुई, लव_मैरिज। बहू पढ़ी-लिखी है, नए विचारों वाली। उसे सास-ससुर यानी कि हम पति-पत्नी गवार लगते हैं, इसलिए हमारे साथ रहना उसे अच्छा नहीं लगता! इसलिए बेटा अब अलग रहता है, यही झुंझुनू में, 2 सालों से।”
“परसों मेरे इस मोबाइल पर उसका फोन आया था। कह रहा था अमेरिका में नौकरी मिली है उसे। बीवी को लेकर जा रहा है अमेरिका, 10 साल के लिए! यहां झुंझुनूं में था तो 6 महीने में एक बार आता था, हम बूढ़े-बूढ़ी को मिलने के लिए। अब इतने दूर परदेश जा रहा है, एक बार मिलने के लिए आओ, बोला तो अब समय नहीं बचा है। परसों फ्लाइट में बैठकर जाना है, कहता है। अब 10 साल के लिए जा रहा है। पता नहीं तब तक हम जिएंगे या मरेंगे…. इसलिए सोचा खुद ही जाकर मिल लेता हूं। कल शाम से एयरपोर्ट को ढूंढ रहा हूं, लेकिन यहां के लोग कहते हैं कि इस एरिया में एयरपोर्ट है ही नहीं!” बुजुर्ग ने एड्रेस वाली चिट्ठी मेरे हाथ में देते हुए कहा।
उनकी बात सुनकर मैंने कहा, “लोग सच कह रहे हैं। एयरपोर्ट यहां नहीं है, रीको साइड में है।”
बुजुर्ग ने मेरी तरफ देखकर कहा, “लेकिन परसों जब बेटे का फोन आया था, तो उसने यही पता लिखवाया था मुझे। लगता है यह फोन भी खराब हो गया है। फोन ही नहीं आ रहा है बेटे का। मैंने बताया था उसको कि मैं उससे मिलने आ रहा हूं झुंझुनूं।” कहते हुए बुजुर्ग ने मोबाइल मुझे देखने के लिए दिया।
अब मेरे एक हाथ में चिट्ठी और एक हाथ में मोबाइल था। मैंने मोबाइल का बटन दबाकर देखा, मोबाइल अच्छे से चल रहा था और मोबाइल में नेटवर्क भी पूरी तरह से आ रहा था। मैंने उनसे पूछा, “आपने नहीं लगाया फोन, बेटे को?”
“मुझे कहां लगाना आता है बेटा फोन? कोई फोन करता है तो उठा लेता हूं बस।” उन्होंने कहा।
मैंने रिसीव्ड_कॉल में जाकर आखरी आए नंबर पर कॉल किया। दो रिंग्स बजने के बाद कॉल कट कर दिया गया।
फिर मैंने एड्रेस की चिट्ठी खोलकर देखी। उसमें जहां हम बैठे थे, वहीं का एड्रेस था, यानी कि जानबूझकर गलत एड्रेस दिया गया था!
मैं समझ चुका था कि गलत पता देकर लड़का अपने मां-बाप को टाल रहा था और अब वह उनका फोन भी नहीं उठा रहा था। मुझे यह भी मालूम पड़ चुका था कि वह जिस प्लेन में सवार हो चुका था, वह प्लेन कभी भी उनके मां-बाप की दिशा में उड़ने वाला नहीं था!
तब तक मेरा दोस्त वहां आ गया और बोला, “चलो, शॉपिंग करने चलते हैं।” मैंने उसे 2 मिनट रुकने के लिए कहा और बुजुर्ग की तरफ देखकर सोच में पड़ गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने बेटे की तरफ से होने वाली धोखेबाजी को यह बुजुर्ग समझ नहीं पा रहे थे या फिर खुद का बच्चा उनके साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है, यह वो स्वीकार नहीं कर पा रहे थे!
मैं बुजुर्ग से बोला, “अब तक तो आपका बेटा जिस प्लेन में बैठा है, वह उड़ चुका होगा। मुझे नहीं लगता कि अब आपकी उससे मुलाकात हो पाएगी। इसलिए अच्छा यही होगा आप वापस अपने घर लौट जाएं और आंटी भी आपका इंतजार करती होंगी।”
मेरी बात सुनते ही अगले ही क्षण उनकी आंखें भर आईं। आंसू भरी आंखों से वह मेरी तरफ देखने लगे! घर जाने के लिए भाड़े के पैसे देते हुए मैंने उनके हाथों पर हाथ रखा और पूछा, “अंकल, मैं कब से आपके हाथों में यह डब्बा देख रहा हूं। क्या है इस डब्बे में?”
“मोतीचूर के लड्डू हैं मेरे बेटे के पसंद के। उसकी मां ने भेजे हैं, उसके लिए खुद बना कर…..!!!!” बुजुर्ग ने कहा।
किसी खंजर से मेरे दिल को चीरकर मेरे अंतःकरण को लहूलुहान कर दिया हो, ऐसी मेरी हालत हो गई। मैं निशब्द होकर बुजुर्ग की तरफ देखता रहा और वहीं बैठा रहा।
“अरे भाई चल ना, देर हो रही है।” मेरे दोस्त की आवाज कानों में पड़ी तो मैं होश में आया और ऐसे ही उस भीड़ में उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
घर पहुंच कर आधी रात तक मैं सो नहीं पाया। रह-रहकर एक ही सवाल मेरे मन में उठ रहा था। एक कचोरी की भीख मांगने वाला वह बेचारा आदमी, भूख से बेहाल होने के बावजूद भी अपने साथ लाए उन मोतीचूर के लड्डुओं में से एक लड्डू खुद नहीं खा सकता था क्या? अपने बेटे से इतना प्यार???
अगले दिन उसी जगह जाकर देखा तो बुजुर्ग व्यक्ति अपनी सांसे छोड़ चुका था।
मैंने और मेरे दोस्त ने मिलकर पार्थिव शरीर उनके गांव पहुचाई ओर उनका बेटा बनकर अंतिम संस्कार किया।
सभी रस्में पूरी करके मैं आंटीजी को लेकर अपने घर आ गया। आज हम सब बहुत खुश है लेकिन मन मे एक टीस आज भी है कि काश उस दिन बुजुर्ग व्यक्ति को भी अपने साथ लेकर आ जाता तो कितना अच्छा होता।
कुछ रिश्ते बहुत मीठे होते हैं, बस उनको अपनाने की देरी है।कोई भी बेटा बेटी अपने माता पिता के साथ ऐसा अन्याय कभी ना करें, बड़ी मेहनत से अपनी औलाद को पालते है।

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