व्यक्ति और नर्तकी
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किसी गाँव में एक धार्मिक व्यक्ति रहता था जो दिन भर लोगों को धर्म का उपदेश दिया करता था। उसी गाँव में एक नर्तकी थी, जो लोगों के सामने नाचकर उनका मन बहलाया करती थी।
एक दिन गाँव में बाढ़ आ गयी और दोनों एक साथ ही मर गये। मरने के बाद जब ये दोनों यमलोक पहूँचे तो इनके कर्मों और उनके पीछे छिपी भावनाओं के आधार पर इन्हें स्वर्ग या नरक दिये जाने की बात कही गई। व्यक्ति खुद को स्वर्ग मिलने को लेकर पुरा आश्वस्त था। वहीं नर्तकी अपने मन में ऐसा कुछ भी विचार नहीं कर रही थी। नर्तकी को सिर्फ फैसले का इंतजार था।
तभी घोषणा हुई कि व्यक्ति को नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है। इस फैसले को सुनकर व्यक्ति गुस्से से यमराज पर चिल्लाया और क्रोधित होकर पूछा, “यह कैसा न्याय है महाराज?, मैं जीवन भर लोगों को उपदेश देता रहा और मुझे नरक नसीब हुआ! जबकि यह स्त्री जीवन भर लोगों को रिझाने के लिये नाचती रही और इसे स्वर्ग दिया जा रहा है। ऐसा क्यों?”
यमराज ने शांत भाव से उत्तर दिया, “यह नर्तकी अपना पेट भरने के लिये नाचती थी लेकिन इसके मन में यही भावना थी कि मैं अपनी कला को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर रही हूँ। जबकि तुम उपदेश देते हुये भी यह सोंचते थे कि काश तुम्हें भी नर्तकी का नाच देखने को मिल जाता!
हे व्यक्ति! लगता है तुम ईश्वर के इस महत्त्वपूर्ण सन्देश को भूल गए कि इंसान के कर्म से अधिक कर्म करने के पीछे की भावनाएं मायने रखती है। अतः तुम्हें नरक और नर्तकी को स्वर्ग दिया जाता है।
हम कोई भी काम करें, उसे करने के पीछे की नियत साफ़ होनी चाहिए। अन्यथा दिखने में भले लगने वाले काम भी हमें पुण्य की जगह पाप का ही भागी बनाते हैं।