Monday, December 8, 2025

चिंतन मनन

*बगुले ने हंस से पूछा—-क्यों श्रीमान! यह बताइये की आप को इतना ज्ञानी-विद्वान क्यों माना जाता है ? आप भी तो हमारी तरह एक पक्षी ही हैं।*

*हंस ने बगुले के ताने को हँस कर टाल दिया। तभी कोई व्यक्ति वहाँ पर एक कटोरी दूध रख गया। हंस दूध पीता,इससे पहले बगुले ने उसमें चोंच मारी,पर थोड़ा दूध पीकर उसने बाकी सारा उँडेल दिया और कहा-“अरे इसमें तो मछली की बदबू आ रही है।”*
*हंस हँसा और बोला-“भाई बगुले! दूध तो साफ़ और निर्दोष है,पर तुमने मुँह में मछली दबा रखी है,इसलिए तुम्हें दूध में भी दुर्गंध आई।”*
*इतना कहकर हंस आगे बोला-“जब हमारे चित्त में कुटिलतायें और कलुष होता है , तो हमें सारी दुनिया बदसूरत दिखाई पड़ती है,पर यदि हमारा मन स्वच्छ और परिष्कृत होता है तो हमें सृष्टि में सौदर्य ही सौंदर्य दिखाई पड़ता है…..”*
*बगुले को पता चल गया कि…… हंस को नीर-क्षीर का ज्ञान रखने वाला विवेकशील प्राणी क्यों माना जाता हैं….!*
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