कृष्ण और कंस
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एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था। लोग उसकी चित्रकारी की काफी प्रशंसा करते थे। एक दिन श्री कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा व्यक्त की। चित्रकार तुरन्त इसके लिये तैयार हो गया क्योंकि यह भगवान् का काम था, पर उसने कुछ शर्ते रखी।
उसने कहा मुझे योग्य पात्र चाहिए अगर वो मिल जाएं तो मैं आसानी से चित्र बना दूंगा। कृष्ण जी के चित्र लिए एक योग्य नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दें तब मैं चित्र बनाकर दूंगा।
कृष्ण मंदिर के भक्त एक बालक ढूंढ कर ले आये, बालक सुन्दर था। चित्रकार ने उसे पसन्द किया और उस बालक को सामने रख बालकृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।
अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुश्किल था ! जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालो को पसंद आता वो चित्रकार को पसन्द नहीं आता क्योंकि उसे वो भाव मिल ही नहीं रहे थे…
इसी इंतजार में कई साल गुजर गए तस्वीर अधूरी ही रही ; तस्वीर पूरी करवाने के लिए लोग आखिरकार थक-हार कर उस चित्रकार को जेल में ले गए, जहाँ उम्रकैद काट रहे अपराधी थे।
उनमें से एक व्यक्ति को चित्रकार ने पसन्द किया और उसे सामने बैठाकर उसने कंस का चित्र बनाया ! इस तरह सालों बाद कृष्ण और कंस की वो तस्वीर पूर्ण हुई।
कृष्ण मंदिर के भक्त तस्वीर देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। सभी लोग उसकी तारीफ करने लगे
कंस बने उस अपराधी से नहीं रहा गया और उसने भी वह तस्वीर देखने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन यह क्या…जैसे ही उसने वो तस्वीर देखी वो फूट-फूटकर रोने लगा।
यह देख सभी हैरान रह गए। चित्रकार ने जब बड़े प्यार से उस अपराधी के रोने का कारण पूछा तो हिचकियाँ लेता हुआ वह बोला- शायद आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं वो ही बच्चा हूं जिसे सालों पहले आपने इस चित्र में बालकृष्ण बनाया था… मेरे कुकर्म देखिए कि आज मैं कृष्ण से कंस बन गया… इस तस्वीर में मैं ही कृष्ण और मैं ही कंस हूँ।
दरअसल ईश्वर ने तो हम सभी को अपना ही प्रतिरूप बनाया है। हम ही हैं जो अपने कर्मों से अच्छे या बुरे बनते हैं। कृष्ण या कंस बनना ईश्वर के नहीं हमारे अपने हाथ में है.