कोरबा के दो बुजुर्ग दोस्तों ने मृत्यु के बाद देहदान करने का संकल्प लिया है। उनका मानना है कि शरीर मिट्टी में मिलने के बजाय किसी के काम आ सके।
75 वर्षीय विवारू राम नोनिया और 74 वर्षीय बुद्धू दास महंत कोरबा के बालको स्थित कैलाश नगर, बेला कछार के निवासी हैं। पिछले एक दशक से दोनों दोस्त नियमित रूप से मॉर्निंग वॉक पर साथ जाते हैं। बढ़ती उम्र को देखते हुए उन्होंने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।
शरीर किसी के काम आ सके, तो यह सौभाग्य की बात होगी
विवारू राम नोनिया 2011 में बालको से रिटायर हुए थे। उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं, जिन्होंने उनके इस निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, “यह मिट्टी का शरीर है, एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा। यदि मृत्यु के बाद भी यह शरीर किसी के काम आ सके, तो यह सौभाग्य की बात होगी।”
विवारू राम ने बताया कि उन्होंने कोरबा में देहदान के प्रति बने सकारात्मक माहौल और अपने गुरु रामपाल से प्रेरणा लेकर यह कदम उठाया है। उनके परिवार के सभी सदस्यों ने इस पर सहमति व्यक्त की है। उन्होंने समाज से अपील की है कि वे सामाजिक कुरीतियों को दूर कर इस नेक कार्य में आगे आएं।
इस बुजुर्ग जोड़ी के दूसरे सदस्य बुद्धू दास महंत तीन बेटों और एक बेटी के पिता हैं। उन्होंने जीवन भर मजदूरी की है। उनकी भी यही इच्छा है कि मरणोपरांत उनका शरीर या कोई अंग किसी जरूरतमंद के काम आ सके।
अंग किसी ऐसे को जो पढ़कर डॉक्टर बने और सेवा करे
बुद्धू दास महंत ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि यदि उनके शरीर से कोई अंग किसी ऐसे व्यक्ति को मिलता है जो पढ़कर डॉक्टर बनता है और लोगों की सेवा करता है, तो यह उनके लिए सौभाग्य की बात होगी।


