Monday, December 8, 2025

रूस-यूक्रेन विवाद के बीच कैसे पूरा विश्व आज भारत की सफल कूटनीति का लोहा मानने लगा है

पिछले कुछ समय में भारत की विदेश नीति (India Foreign Policy) में एक अभूतपूर्व अंतर दिखा है. धीरे-धीरे विदेश नीति कूटनीति (Diplomacy) में बदल गयी, ताकि भारत के हितों को ना सिर्फ सुरक्षित किया जा सके बल्कि कूटनीति के जरिए देश को अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में मजबूती भी प्रदान की जा सके. अभी पिछले एक हफ्ते के अन्दर दो ऐसी घटना हुईं, जिससे साफ़ लगने लगा है कि मोदी सरकार की विदेश नीति अब रंग दिखाने लगी है. हम बात कर रहे हैं चीन के विदेश मंत्री वांग यी (China Foreign Minister Wang Wi) की भारत यात्रा की और ठीक उसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की श्रीलंका यात्रा की. पर इन दो घटनाओं की समीक्षा करने से पहले एक नज़र डालते हैं कि विदेश नीति और कूटनीति में क्या फर्क होता है.

किसी भी देश की एक विदेश नीति होती है, जिसका अभिप्राय होता है देश के हितों की रक्षा करना और उसे आगे बढ़ाना. और कूटनीति वह अश्त्र होता है जिसके जरिए विदेश नीति में अंतिक लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश की जाती है. विदेश नीति आम तौर पर स्थायी होता है और इसमें कुछ भी गुप्त नहीं होता है. उदाहरण के लिए कश्मीर को अपने देश का हिस्सा बनाना पाकिस्तान की विदेश नीति पिछले सात दशको से भी अधिक समय से रही है. सरकारों के बदलने से किसी देश की विदेश नीति में मामूली फर्क ही देखा जाता है.

यह अलग बात है कि अगर वह लक्ष्य हासिल हो सके तो उसे कूटनीति की सफलता मानी जाती है और अगर असफल रहे तो उसे कूटनीति की असफलता मानी जाती है. सरल शब्दों में, पाकिस्तान की विदेश नीति इसलिए असफल रही क्योंकि उसकी कूटनीति कमजोर थी और अगर आज सऊदी अरब और संक्युत अरब अमीरात जैसे मुस्लिम देश भी कश्मीर के मुद्दे पर भारत का समर्थन करते दिख रहे हैं तो इसे भारत की कूटनीति की सफलता के रूप में देखा जा सकता है.

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