*पारिवारिक मतभेद*
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महाभारत काल में जब पांडव वनवास काल में थे तो अपना जीवन एक कुटियाँ में रहकर बिता रहे थे ।
जिसके बारे में जब दुर्योधन को पता चला तो उसने पांडवों को नीचा दिखाने के लिए पूर्ण ऐश्वर्य के साथ वन में जाने की सोची ताकि वो पांडवो को ईर्ष्या से जलता देख सके |
जब दुर्योधन वन के लिए निकला | तब उसकी रास्ते में गंधर्वराज से मुलाकात हुई |
उसी वक्त दुर्योधन ने सोचा कि गंधर्वकुमार को हराकर पांडवो को अपनी ताकत का प्रमाण देने का अच्छा मौका हैं |
ऐसा सोच उन्होंने गंधर्व राज पर आक्रमण कर दिया लेकिन गन्धर्व राज अत्यंत शक्तिशाली थे। उन्होंने दुर्योधन को हरा दिया और उसे बंदी बना दिया। जब इसकी सुचना पांडवो को मिली तब युधिष्ठिर ने भाईयों को आदेश दिया कि वे जाकर दुर्योधन को वापस लायें | यह सुनकर भीम ने कहा – भ्राता ! यूँ तो दुर्योधन हमारा भाई हैं लेकिन वो सदैव हमारा अहित सोचता हैं तो ऐसे में उसकी मदद क्यूँ की जाये ?
तब युधिष्ठिर ने उत्तर दिया – भले ! हमारा और हमारे भाईयों का बैर हैं लेकिन वो एक घर की बात हैं जिसे जग जाहिर करना गलत हैं।
पारिवारिक झगड़े परिवार में ही रहे उसी में परिवार की इज्जत हैं। इसे यूँ प्रदर्शित करना पूर्वजो का अपमान हैं।
बड़े भाई की आज्ञा मान पांडव गंधर्वराज से युद्ध करते हैं और दुर्योधन को छुड़ा लाते हैं और अपने परिवार की रक्षा करते है।
अगर आप परिवार के झगड़ों की बाते अन्य के सामने करते हैं तो आपके बुजुर्गों एवम् उनके संस्कारों पर लोग प्रश्नचिन्ह लगाते हैं जिससे परिवार की साख मिट्टी में मिल जाती हैं। अतः जहाँ तक कोशिश करें पारिवारिक मनमुटाव को परिवार में ही रहने दे उसका बखान कर परिवार की नींव कमज़ोर ना करें।


